बम-बारूद पर सट्टा लगाता रहा पाकिस्तान और गर्त में समाती चली गई इकोनॉमी
बम-बारूद पर सट्टा लगाता रहा पाकिस्तान और गर्त में समाती चली गई इकोनॉमी
Pakistan Economic Development: पाकिस्तान की आजादी के आज 77 साल पूरे हो गए. आज ही के दिन 14 अगस्त 2024 पाकिस्तान आजाद हुआ था और इसके एक दिन बाद 15 अगस्त 1947 को भारत को भी आजादी मिल थी. इन 77 सालों के दौरान भारत के साथ दुश्मनी साधने के लिए पाकिस्तान अमेरिका, चीन और खाड़ी के देशों से आर्थिक मदद लेकर बम-बारुद पर सट्टा लगातार रहा और उसकी अर्थव्यवस्था गर्त में समाती चली गई. वहीं, भारत हमेशा से ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की नीति पर काम करता रहा. दुनिया के देशों से अपना मधुर संबंध स्थापित करता रहा. आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए उद्योग-धंधों को प्रोत्साहित करता रहा और पाकिस्तान की ओर से किए गए आतंकवादी हमलों और थोपे गए युद्धों का सामना भी करता है. इसके बावजूद, आज भारत दुनिया में तेजी से बढ़ती पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था का मुकाम हासिल कर लिया और वह दिन दूर भी नहीं, जब दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाए.
14 अगस्त 1947 को जब पाकिस्तान आजाद हुआ और उसने भारत के साथ बंटवारा किया, तो उसे इस बंटवारे में नकदी के तौर पर 75 करोड़ रुपये मिले थे. इन 75 करोड़ रुपयों में से 20 करोड़ रुपये का भुगतान 15 अगस्त 1947 से पहले ही कर दिया गया था. मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, 12 जून 1947 को बंटवारे के लिए विभाजन समिति का गठन किया गया था. इसकी अध्यक्षता लॉर्ड माउंटबेटन ने की थी. इसमें भारत की ओर से सरदार वल्लभभाई पटेल और डॉ राजेंद्र प्रसाद प्रतिनिधित्व कर रहे थे, जबकि पाकिस्तान की ओर से लियाकत अली खान और अब्दुर रब निश्तर शामिल थे. बाद में अब्दुर रब निश्तर को हटाकर मुहम्मद अली जिन्ना इस परिषद में शामिल हो गए. विभाजन में रक्षा, मुद्रा और सार्वजनिक वित्त के बंटवारे पर समझौता किया गया.
मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय विभाजन समझौते के तहत पाकिस्तान को ब्रिटिश भारत की संपत्ति और देनदारियों का 17.5 फीसदी हिस्सा मिला, लेकिन इस बंटवारे का अंत यहीं नहीं था. पाकिस्तान के नए केंद्रीय बैंक और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को अंग्रेजों को भारत छोड़ने के बाद बची नकद राशि के बंटवारे पर फैसला लेना था. उस समय सरकार के पास की 400 करोड़ रुपये थे. आजादी के बाद भारत-पाकिस्तान दोनों को एक ही केंद्रीय बैंक की ओर से एक साल से अधिक समय तक सेवा दी जाती रही. आरबीआई ने अगस्त 1947 से सितंबर 1948 तक पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक का संचालन किया. दोनों देशों को अक्टूबर 1948 तक केंद्रीय बैंक साझा करना था, लेकिन आरबीआई और पाकिस्तान सरकार के बीच 55 करोड़ रुपये के भुगतान को लेकर संबंध तेजी से बिगड़ने के बाद विभाजन को एक महीने के लिए आगे बढ़ा दिया गया.
भारत से विभाजन के बाद 75 करोड़ रुपये नकदी लेकर जब पाकिस्तान अलग हुआ, तो उसकी आबादी 30 करोड़ थी. 1947 से लेकर 1950 तक उसकी आर्थिक वृद्धि में काफी अधिक योगदान नहीं रहा. वर्ष 1950 के दशक के दौरान पाकिस्तान की आर्थिक वृद्धि औसतन 3.1 फीसदी सालाना थी. खास बात यह है कि इस दशक राजनीतिक और व्यापक आर्थिक अस्थिरता की वजह से उसके पास संसाधनों की कमी बनी रही. 1948 में स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान की स्थापना के बाद 1949 में भारत-पाकिस्तान के बीच मुद्रा विवाद की वजह से व्यापार संबंध तनावपूर्ण बने रहे. 1951-52 और 1952-53 के बीच मानसून की बाढ़ ने और भी आर्थिक समस्याएं पैदा कर दी.
अयूब खान के नेतृत्व में पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में थोड़ा सुधार हुआ. 27 अक्टूबर 1958 से 25 मार्च 1969 तक 11 साल के कार्यकाल के दौरान आर्थिक वृद्धि दर औसतन 5.82 फीसदी रहा. इस दौरान पाकिस्तान में विनिर्माण विकास दर 8.51 फीसदी थी, जो पाकिस्तानी इतिहास में सबसे बड़ी थी. पाकिस्तान ने अपना पहला ऑटोमोबाइल और सीमेंट उद्योग स्थापित किया और सरकार ने पाकिस्तान के अंतरिक्ष कार्यक्रम को शुरू करने के अलावा कई बांध, नहरें और बिजली परियोजनाओं की शुरुआत की.
आर्थिक कुप्रबंधन और वित्तीय तौर पर अविवेकपूर्ण आर्थिक नीतियों की वजह से पाकिस्तान ने कर्ज लेना शुरू कर दिया. 1970 के दशक में विकास धीमा हो गया. इसी दौरान पाकिस्तान ने बम-बारुद में सट्टा लगाकर भारत पर जबरन दो युद्ध थोप दिया. इसमें 1965 और 1971 का युद्ध शामिल है. 1971 की जंग में ही 16 दिसंबर को बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजादी मिली. इससे पाकिस्तान को तगड़ा झटका लगा और आर्थिक तौर पर बुरी तरह से टूट गया. इस युद्ध के बाद पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में मंदी आ गई. 1973 में वैश्विक तेल संकट के बाद पाकिस्तान को अमेरिका से वित्तीय मदद मिलना बंद हो गया, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था की कमर टूट गई.
पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था के विश्लेषकों के अनुसार, अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए पाकिस्तान ने उद्योगों का राष्ट्रीयकरण करना शुरू कर दिया. आर्थिक विश्लेषकों ने इसे दो चरणों में बांट दिया. इसका पहला चरण पीपीपी (पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी) के सत्ता में आने के तुरंत बाद शुरू हुआ, जो वितरण संबंधी चिंताओं से प्रेरित था. इसमें छोटे से उद्योग जगत अभिजात वर्ग द्वारा नियंत्रित करना और वित्तीय पूंजी को सरकार के नियंत्रण में लाना है. हालांकि, 1974 में पार्टी के भीतर वामपंथी विचारधारा का प्रभाव और अधिकार काफी कम हो गया. उद्योगों के राष्ट्रीयकरण के दूसरे चरण में 1974 और 1976 के बीच जुल्फिकार अली भुट्टो द्वारा अपनाई गई आर्थिक कुप्रबंधन ने योजना आयोग की शक्ति को कम कर दिया. पाकिस्तान में भ्रष्टाचार तेजी से बढ़ा और सत्ता के गलियारों तक पहुंच निजी संपत्ति जमा करने का प्राथमिक मार्ग बन गई. इस तरह, सरकारी संस्थानों पर नियंत्रण रखने वाले समूहों और व्यक्तियों ने अर्थव्यवस्था में सार्वजनिक हस्तक्षेप कर अपनी संपत्ति और शक्ति को बढ़ाने का काम किया.
तथाकथित तौर पर जुल्फिकार अली भुट्टो सरकार की ओर से उद्योगों का राष्ट्रीयकरण करने के बाद पाकिस्तान का आर्थिक विकास धीमा हो गया. इसका नतीजा यह रहा कि 1960 के दशक में पाकिस्तान की आर्थिक वृद्धि जहां 6.8 फीसदी थी, वह 1970 के दशक में गिरकर 4.8 फीसदी सालाना हो गई. ज्यादातर सरकारी कंपनियां घाटे में चली गईं. इसका कारण यह था कि सरकार ने उद्योगों का राष्ट्रीयकरण बाजार के आधार पर नहीं, बल्कि व्यक्ति विशेष के अधिकार के आधार पर किया था.
विनियमन की नीति के माध्यम से 1980 के दशक में पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में थोड़ा सुधार हुआ. प्रवासी पाकिस्तानियों की ओर से विदेशी सहायता और रेमिडीज में वृद्धि हुई. मुहम्मद जिया-उल-हक सरकार के कार्यकाल में उद्योग-धंधों पर सरकारी नियंत्रणों समाप्त कर दिया गया. भुगतान संतुलन घाटे को नियंत्रण में रखा गया और पाकिस्तान खाद्य तेलों को छोड़कर सभी बुनियादी खाद्य पदार्थों में आत्मनिर्भर हो गया. इसका नतीजा यह निकला कि 1980 के दशक में पाकिस्तान की आर्थिक वृद्धि दर औसतन 6.5 फीसदी सालाना हो गई.
1990 के दशक में पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की हालत एक बार फिर खास्ता हो गई. इसका कारण यह था कि बेनजीर भुट्टो के नेतृत्व वाली पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और नवाज शरीफ के नेतृत्व वाली पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) के बीच बारी-बारी से चलती रही. पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता की वजह से पाकिस्तान की आर्थिक वृद्धि गिकर 4 फीसदी रह गई. इसी दौरान पाकिस्तान को लगातार राजकोषीय और बाहरी घाटे का सामना करना पड़ा. इससे पाकिस्तान कर्जदार होता चला गया. निर्यात स्थिर हो गया और वैश्विक व्यापार में उसकी हिस्सेदारी घट गई. गरीबी लगभग दोगुनी होकर 18 से 34 फीसदी तक पहुंच गई.
पाकिस्तान में अक्टूबर 1999 में सैन्य तख्तापलट के बाद साल 2001 में परवेज मुशर्रफ पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने. उन्होंने विदेशी और घरेलू कर्ज, राजकोषीय घाटा, कम राजस्व सृजन क्षमता बढ़ती गरीबी और बेरोजगारी को कम करने का प्रयास किया. इसके साथ ही, उन्होंने स्थिर निर्यात के साथ भुगतान का कमजोर संतुलन की चुनौतियों का समाधान करने के लिए काम किया. परवेज मुशर्रफ के बेहतर आर्थिक प्रबंधन के साथ-साथ ठोस संरचनात्मक नीतियों ने 2002 और 2007 के बीच विकास को गति दी. 1999 से 2008 तक मुशर्रफ के कार्यकाल के दौरान लगभग 11.8 मिलियन नई नौकरियां सृजित की गईं, जबकि प्राथमिक विद्यालय में नामांकन बढ़ा. ऋण से जीडीपी अनुपात 100 से घटकर 55 फीसदी हो गया. इसी दौरान पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार अक्टूबर 1999 में 1.2 बिलियन डॉलर से बढ़कर 30 जून 2004 को 10.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया. मुद्रास्फीति की दर में गिरावट आई, जबकि निवेश दर जीडीपी के 23 फीसदी तक बढ़ गई.
2008 में बढ़ते कानूनी और सार्वजनिक दबावों के कारण मुशर्रफ के इस्तीफे के बाद पीपीपी सरकार ने एक बार फिर पाकिस्तान पर नियंत्रण हासिल कर लिया. आसिफ अली जरदारी और सैयद यूसुफ रजा गिलानी के प्रशासन ने हिंसा, भ्रष्टाचार और अस्थिर आर्थिक नीतियों में नाटकीय वृद्धि देखी, जिसने पाकिस्तान को मुद्रास्फीति के युग में फिर से प्रवेश करने के लिए मजबूर किया. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था 2004-08 में मुशर्रफ और शौकत अजीज के तहत 8.96 से 9.0 फीसदी की दर के विपरीत लगभग 4.09 फीसदी तक धीमी हो गई, जबकि वार्षिक विकास दर 5.0 फीसदी के दीर्घकालिक औसत से गिरकर लगभग 2.0 प्रतिशत हो गई.
2013 में नवाज शरीफ एक बार फिर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने. उन्हें ऊर्जा की कमी, बढ़ती मुद्रास्फीति, हल्की आर्थिक वृद्धि, उच्च ऋण और बड़े बजट घाटे से अपंग अर्थव्यवस्था को विरासत में मिली. पदभार ग्रहण करने के तुरंत बाद पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) से 6.3 बिलियन डॉलर का पैकेज लेना पड़ा. तेल की कीमतें, बेहतर सुरक्षा और उपभोक्ता खर्च ने वित्त वर्ष 2014-15 में विकास को सात साल के उच्चतम 4.3 फीसदी के स्तर पर पहुंचाया और विदेशी भंडार बढ़कर 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया. मई 2014 में आईएमएफ ने पुष्टि की कि 2008 में 25 फीसदी की तुलना में 2014 में मुद्रास्फीति घटकर 13 फीसदी हो गई थी. आईएमएफ ऋण कार्यक्रम सितंबर 2016 में समाप्त हो गया. हालांकि, पाकिस्तान कई संरचनात्मक सुधार मानदंडों से चूक गया, लेकिन इसने व्यापक आर्थिक स्थिरता बहाल की.
इसे भी पढ़ें: बांग्लादेशी हिल्सा के लिए तरसेगा बंगाल? शेख हसीना तख्तापलट के बाद आयात बंद
2020 में पूरी दुनिया में आए कोविड महामारी के समय से ही पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति डावांडोल हो गई. महामारी के खत्म होने के बाद भी हालत में सुधार नहीं हुआ. कोविड महामारी शुरू होने से पहले क्रिकेटर से राजनेता बने पीटीआई के नेता इमरान खान प्रधानमंत्री बने. उनके कार्यकाल में पाकिस्तान अमेरिका, चीन, विश्व बैंक और आईएमएफ के आर्थिक पैकेज पर निर्भर हो गया. थोक और खुदरा मुद्रास्फीति आसमान पर पहुंच गई. लोगों की जरूरत की चीजें महंगी हो गईं. पेट्रोल-डीजल, आलू, टमाटर, प्याज समेत तमाम खाद्य पदार्थों की कीमतें बेकाबू हो गईं. कोविड महामारी के समाप्त होते ही 24 फरवरी 2022 को रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया, जिससे दुनिया भर में तेल की कीमतें बढ़ गईं. इसी समय इमरान खान का तख्ता पलट भी हो गया. उसके बाद नवाज शरीफ के भाई शहबाज शरीफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने, जो फिलहाल पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए खाड़ी और दुनिया के देशों के सामने झोली फैलाते हुए नजर आ रहे हैं. आईएमएफ और विश्व बैंक जैसी वैश्विक वित्तीय संस्थाएं भी आर्थिक पैकेज देने से परहेज करने लगे और देते भी हैं, तो कई शर्त पहले ही आमद कर दिए होते हैं.
इसे भी पढ़ें: कभी प्राचीन व्यापारिक मार्ग था यह हिमालयन दर्रा, आज भारत-पाकिस्तान की किलेबंदी का बन गया केंद्र
The post बम-बारूद पर सट्टा लगाता रहा पाकिस्तान और गर्त में समाती चली गई इकोनॉमी appeared first on Prabhat Khabar.
Like
Dislike
Love
Angry
Sad
Funny
Wow
LEO 1 Software: शैक्षणिक संस्थानों की परेशानियां चुटकियों में दूर करेगा यह नया सॉफ्टवेयर
August 15, 2024Air India ने दिल्ली-नारिता-दिल्ली सेक्टर की उड़ानें रद्द की, इस वजह से कंपनी ने लिया फैसला
August 15, 2024
Comments 0